हिन्दी व्याकरण भाग २ (HINDI GRAMMAR PART 2)

लोकोक्तियाँ (proverbs)

किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को ‘लोकोक्ति’ कहते हैं।

दूसरे शब्दों में- जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।

उदाहरण- ‘उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ । यहाँ ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है ‘एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता’ ।

लोकोक्ति किसी घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है, तब ‘लोकोक्ति’ हो जाती है।

मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर

दोनों में अंतर इस प्रकार है-

(1) मुहावरा वाक्यांश होता है, जबकि लोकोक्ति एक पूरा वाक्य, दूसरे शब्दों में, मुहावरों में उद्देश्य और विधेय नहीं होता, जबकि लोकोक्ति में उद्देश्य और विधेय होता है। 

(2) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है। 

(3) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं जबकि लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।

यहाँ कुछ लोकोक्तियाँ व उनके अर्थ तथा प्रयोग दिये जा रहे हैं-

अन्धों में काना राजा= (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति)

प्रयोग- मेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नही; इसलिए गाँववाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ समझते हैं। ठीक ही कहा गया है, अन्धों में काना राजा।

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता= (अकेला आदमी लाचार होता है।)

प्रयोग- माना कि तुम बलवान ही नहीं, बहादुर भी हो, पर अकेले डकैतों का सामना नहीं कर सकते। तुमने सुना ही होगा कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।

अधजल गगरी छलकत जाय= डींग हाँकना।

प्रयोग- इसके दो-चार लेख क्या छप गये कि वह अपने को साहित्य-सिरमौर समझने लगा है। ठीक ही कहा गया है, ‘अधजल गगरी छलकत जाय।’

आँख का अन्धा नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना।)

प्रयोग- एक मियाँजी का नाम था शेरमार खाँ। वे अपने दोस्तों से गप मार रहे थे। इतने में घर के भीतर बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई लड़ पड़ी। सुनते ही शेरमार खाँ थर-थर काँपने लगे। यह देख एक दोस्त ठठाकर हँस पड़ा और बोला कि वाह जी शेरमार खाँ, आपके लिए तो यह कहावत बहुत ठीक है कि आँख का अन्धा नाम नयनमुख।

आँख के अन्धे गाँठ के पूरे= (मूर्ख धनवान)

प्रयोग- वकीलों की आमदनी के क्या कहने। उन्हें आँख के अन्धे गाँठ के पूरे रोज ही मिल जाते हैं।

आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ= नुकसान होते-होते जो कुछ बच जाय, वही बहुत है।

प्रयोग- किसी के घर चोरी हुई। चोर नकद और जेवर कुल उठा ले गये। बरतनों पर जब हाथ साफ करने लगे, तब उनकी झनझनाहट सुनकर घर के लोग जाग उठे। देखा तो कीमती माल सब गायब। घर के मालिकों ने बरतनों पर आँखें डालकर अफसोस करते हुए कहा कि खैर हुई, जो ये बरतन बच गये। आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ। यदि ये भी चले गये होते, तो कल पत्तों पर ही खाना पड़ता।

आगे नाथ न पीछे पगहा= (किसी तरह की जिम्मेवारी का न होना)

प्रयोग- अरे, तुम चक्कर न मारोगे तो और कौन मारेगा? आगे नाथ न पीछे पगहा। बस, मौज किये जाओ।

आम के आम गुठलियों के दाम= (अधिक लाभ)

प्रयोग- सब प्रकार की पुस्तकें ‘साहित्य भवन’ से खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। ‘आम के आम गुठलियों के दाम’ इसी को कहते हैं

ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर= (काम करने पर उतारू होना)

प्रयोग- जब मैनें देशसेवा का व्रत ले लिया, तब जेल जाने से क्यों डरें? जब ओखली में सिर दिया, तब मूसलों से क्या डर।

आ बैल मुझे मार= (स्वयं मुसीबत मोल लेना)

प्रयोग- लोग तुम्हारी जान के पीछे पड़े हुए हैं और तुम आधी-आधी रात तक अकेले बाहर घूमते रहते हो। यह तो वही बात हुई- आ बैल मुझे मार। 

आँखों के अन्धे नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना)

प्रयोग- उसका नाम तो करोड़ीमल है परन्तु वह पैसे-पैसे के लिए मारा-मारा फिरता है। इसे कहते है- आँखों के अन्धे नाम नयनसुख।

अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को दे= (अधिकार का नाजायज लाभ अपनों को देना)

अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है= अपने स्थान पर निर्बल भी स्वयं को सबल समझता है।

अन्धा क्या चाहे दो आँख= अपनी मनपसन्द वस्तु को पा लेना।

अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ को सँजोना)

अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना= (निर्दयी या मूर्ख के आगे दुःखड़ा रोना बेकार होता है।)

अपनी करनी पार उतरनी= (किये का फल भोगना)

अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे= (अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना)

अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग=(परस्पर संगठन या मेल न रखना)

आप डूबे जग डूबा= (जो स्वयं बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा समझता है।)

आग लगाकर जमालो दूर खड़ी= (झगड़ा लगाकर अलग हो जाना)

आगे कुआँ, पीछे पगहा= (अपना कोई न होना, घर का अकेला होना)

आँख का अंधा नाम नयनमुख= (गुण के विरुद्ध नाम)

आधा तीतर आधा बटेर= (बेमेल स्थिति)

आप भला तो जग भला= (स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा)

आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास= (करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और)

ओछे की प्रीत बालू की भीत=(नीचों का प्रेम क्षणिक)

ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती= (अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता)

ऊँची दूकान फीके पकवान=(केवल ब्राह्य प्रदर्शन)

प्रयोग- जग्गू तेली शुद्ध सरसों तेल का विज्ञापन करता है, लेकिन उसकी दूकान पर बिकता है रेपसीड-मिला सरसों तेल। ठीक है ऊँची दूकान फीके पकवान।

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे= (अपराधी ही पकड़नेवाले को डाँट बताये)

उद्योगिन्न पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी= (उद्योगी को ही धन मिलता है।)

ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी= (बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा)

ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर-घर एकै लेखा= (सभी एक समान)

ऊँट किस करवट बैठता है= (किसकी जीत होती है।)

ऊँट के मुँह में जीरा= (जरूरत से बहुत कम)

ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी= (जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना)

ऊधो का लेना न माधो का देना=(लटपट से अलग रहना)

ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया= (ईश्वर की बातें विचित्र हैं।)

प्रयोग- कई बेचारे फुटपाथ पर ही रातें गुजारते हैं और कई भव्य बंगलों में आनन्द करते हैं। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।

इतनी-सी जान, गज भर की जबान= (छोटा होना पर बढ़-बढ़कर बोलना)

ईंट का जवाब पत्थर= (दुष्ट के साथ दुष्टता करना)

इस हाथ दे, उस हाथ ले= (कर्मो का फल शीघ्र पाना)

ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया= (कहीं सुख, कहीं दुःख)

एक पन्थ दो काज= (एक काम से दूसरा काम हो जाना)

प्रयोग- दिल्ली जाने से एक पन्थ दो काज होंगे। कवि-सम्मेलन में कविता-पाठ भी करेंगे और साथ ही वहाँ की ऐतिहासिक इमारतों को भी देखेंगे।

एक और एक ग्यारह= एकता में शक्ति होती है।

एक हाथ से ताली नहीं बजती= झगड़ा एक ओर से नहीं होता।

एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा= (बुरे का और बुरे से संग होना)

एक अनार सौ बीमार= (एक वस्तु को सभी चाहनेवाले)

एक तो चोरी दूसरे सीनाज़ोरी= (दोष करके न मानना)

एक म्यान में दो तलवार= (एक स्थान पर दो उग्र विचार वाले)

कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली= (उच्च और साधारण की तुलना कैसी)

प्रयोग- तुम सेठ करोड़ीमल के बेटे हो। मैं एक मजदूर का बेटा। तुम्हारा हमारा और मेरा मेल कैसा ? कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली।

कंगाली में आटा गीला= परेशानी पर परेशानी आना।

कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भींगे पानी= (प्रकृतीविरुद्ध काम)

कहे खेत की, सुने खलिहान की= (हुक्म कुछ और करना कुछ और)

कहीं का ईट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा= (इधर-उधर से सामान जुटाकर काम करना)

काला अक्षर भैंस बराबर=(निरा अनपढ़)

काबुल में क्या गदहे नहीं होते= (अच्छे बुरे सभी जगह हैं।)

का वर्षा जब कृषि सुखाने= (मौका बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है।)

काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती= (कपट का फल अच्छा नहीं होता)

किसी का घर जले, कोई तापे= (दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना)

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है= एक का प्रभाव दूसरे पर अवश्य पड़ता है।

खरी मजूरी चोखा काम= (अच्छे मुआवजे में ही अच्छा फल प्राप्त होना)

खोदा पहाड़ निकली चुहिया= (कठिन परिश्रम, थोड़ा लाभ)

खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा= (अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को)

गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं)

गुड़ खाय गुलगुले से परहेज= (बनावटी परहेज)

गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा= (पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढना)

गाछे कटहल, ओठे तेल= (काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा)

गरजेसो बरसे नहीं= (बकवादी कुछ नहीं करता)

गुड़ गुड़, चेला चीनी= (गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना)

घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाता है, पर दूर का ज्यादा)

प्रयोग- जग्गू को लोग जगुआ कहकर पुकारते थे। घर त्यागकर सिद्ध पुरुष की संगति में रहकर उसने सिद्धि प्राप्त कर ली और उसका नाम हो गया- स्वामी जगदानन्द। गाँव लौटा, तो किसी ने उसके गुणों की ओर ध्यान नहीं दिया। ठीक ही कहा गया है: ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध।’

घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा= (हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना)

घर पर फूस नहीं, नाम धनपत= (गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना)

घर का भेदी लंका ढाए= (आपस की फूट से हानि होती है।)

घर की मुर्गी दाल बराबर= (घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना)

घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना= (दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना)

घी का लड्डू टेढ़ा भला = (लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो।)

चिराग तले अँधेरा= (अपनी बुराई नहीं दीखती)

प्रयोग- मेरे समधी सुरेशप्रसादजी तो तिलक-दहेज न लेने का उपदेश देते फिरते है; पर अपने बेटे के ब्याह में दहेज के लिए ठाने हुए हैं। उनके लिए यही कहावत लागू है कि ‘चिराग तले अँधेरा।’

चोर की दाढ़ी में तिनका= अपराधी स्वयं ही पकड़ा जाता है।

चूहे घर में दण्ड पेलते हैं= (आभाव-ही-आभाव)

चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय= (महा कंजूस)

जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ= (परिश्रम का फल अवश्य मिलता है)

प्रयोग- एक लड़का, जो बड़ा आलसी था, बार-बार फेल करता था और दूसरा, जो परिश्रमी था, पहली बार परीक्षा में उतीर्ण हो गया। जब आलसी ने उससे पूछा कि भाई, तुम कैसे एक ही बार में पास कर गये, तब उसने जवाब दिया कि ‘जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ’।

जान बची तो लाखों पाये= जान बचने से बड़ा कोई लाभ नहीं है।

ठठेरे-ठठेरे बदलौअल= (चालाक को चालक से काम पड़ना)

ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका= (एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना)

तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा= (जितने आदमी उतने विचार)

तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे (छाती फाटे)= खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालूम हो)

तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता= (शेखी बघारना)

तीन लोक से मथुरा न्यारी= (निराला ढंग)

तुम डाल-डाल तो हम पात-पात= (किसी की चाल को खूब समझते हुए चलना)

थोथा चना बाजे घना= कम जानकार में घमण्ड अधिक होता है।

थूक कर चाटना ठीक नहीं= (देकर लेना ठीक नहीं, वचन-भंग करना, अनुचित।)

दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी= (मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान।)

दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली= ( काम साधारण, खर्च अधिक)

दाल-भात मेंमूसलचन्द= (बेकार दखल देना)

दुधारू गाय की दो लात भी भली= (जिससे लाभ होता हो, उसकी बातें भी सह लेनी चाहिए)

दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है= (एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना)

दूर का ढोल सुहावना= (दूर से कोई चीज अच्छी लगती है।)

देशी मुर्गी, विलायती बोल= (बेमेल काम करना)

दूध का दूध पानी का पानी= सही निर्णय।

दूध का जला छाछ को फूंक मारकर पीता है= धोखा खाकर आदमी सतर्क हो जाता है।

दीवारों के भी कान होते हैं= गुप्त बात छिपी नहीं रहती।

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का= (निकम्मा, व्यर्थ इधर-उधर डालनेवाला)

नाच न जाने आँगन टेढ़= (काम न जानना और बहाना बनाना)

प्रयोग- सुधा से गाने के लिए कहा, तो उसने कहा- साज ही ठीक नहीं, गाऊँ क्या ?कहा है: ‘नाच न जाने आँगन टेढ़।’

न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी= (न कारण होगा, न कार्य होगा)

प्रयोग- सेठ माणिकचन्द के घर रोज लड़ाई-झगड़ा हुआ करता था। इस झगड़े की जड़ में था एक नौकर। वही इधर की बात उधर किया करता था। यह बात सेठ को मालूम हो गयी। उन्होंने उसे निकाल दिया। बहुतों ने उसकी ओर से सिफारिश की तो सेठ ने कहा- ‘नहीं, वह झगड़ा लगाता है। ‘न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।’

नक्कारखाने में तूती की आवाज= (सुनवाई न होना)

न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी= (न बड़ा प्रबंध होगा न काम होगा)

न देने के नौ बहाने= (न देने के बहुत-से बहाने)

नदी में रहकर मगर से वैर=(जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना)

नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च= काम साधारण, खर्च अधिक)

नौ नगद, न तेरह उधार= (अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा)

नीम हकीम खतरे जान= (अयोग्य से हानि)

नाम बड़े, पर दर्शन थोड़े= (गुण से अधिक बड़ाई)

नाच कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान= आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है।)

पढ़े फारसी बेचे तेल देखो यह किस्मत (या कुदरत) का खेल= (भाग्यहीन होना)

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं= (पराधीनता में सुख नहीं)

पहले भीतर तब देवता-पितर= (पेट-पूजा सबसे प्रधान)

पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची= (जबरदस्ती किसी के सर पड़ना)

पराये धन पर लक्ष्मीनारायण= (दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना)

पानी पीकर जात पूछना= (कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना)

पंच परमेश्वर= (पाँच पंचो की राय)

पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं= सभी व्यक्ति एक-से नहीं होते।

बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना= अचानक मनचाहा कार्य हो जाना।

बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल= (श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना)

बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद= (मूर्ख गुण की कद्र करना नहीं जानता)

बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा= (जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता)

बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय= (जैसी करनी, वैसी भरनी)

बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया= (बहुत बड़ा घाटा)

बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी= (भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी)

बेकार से बेगार भली= (चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना)

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह= (बड़ा तो जैसा है, छोटा उससे बढ़कर है)

भागते चोर की लंगोटी ही सही= (सारा जाता देखकर थोड़े में ही सन्तोष करना)

प्रयोग- सेठ करोड़ीमल पर मेरे दस हजार रुपये थे। दिवाला निकलने के कारण वह केवल दो हजार रु० ही दे रहा है। मैंने सोचा, चलो भागते चोर की लंगोटी ही सही।

भइ गति साँप-छछूँदर केरी= (दुविधा में पड़ना)

भैंस के आगे बीन बजावे, भैंस रही पगुराय= (मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।)

भागते भूत की लँगोटी ही सही= (जाते हुए माल में से जो मिल जाय वही बहुत है।)

मुँह में राम बगल में छुरी= (कपटपूर्ण आचरण)

मियाँ की दौड़ मस्जिद तक= (किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सिमित होना)

मन चंगा तो कठौती में गंगा= (हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक)

मान न मान मैं तेरा मेहामन= (जबरदस्ती किसी के गले पड़ना)

मेढक को भी जुकाम= (ओछे का इतराना)

मार-मार कर हकीम बनाना= (जबरदस्ती आगे बढ़ाना)

माले मुफ्त दिले बेरहम= (मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना)

मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी= (जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हो तो दूसरे को इसमें क्या)

मोहरों की लूट, कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना)

मानो तो देव, नहीं तो पत्थर= (विश्वास ही फलदायक)

मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते= (मुप्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ)

रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी= (बुरी हालत में पड़कर भी अभियान न त्यागना)

रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी= (अधिक मजाक बुरा)

लश्कर में ऊँट बदनाम= (दोष किसी का, बदनामी किसी की)

लूट में चरखा नफा= (मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा)

लेना-देना साढ़े बाईस= (सिर्फ मोल-तोल करना)

साँप मरे न लाठी टूटे= काम भी बन जाये और हानि भी न हो।

सब धन बाईस पसेरी= (अच्छे-बुरे सबको एक समझना)

सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को= (जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना)

सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता= (सिधाई से काम नहीं होता)

सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जोय (जोरू)= (सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना)

होनहार बिरवान के होत चीकने पात= (होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।)

प्रयोग- वह लड़का जैसा सुन्दर है, वैसा ही सुशील, और जैसा बुद्धिमान है, वैसा ही चंचल। अभी बारह वर्ष भी पूरे नहीं हुए, पर भाषा और गणित में उसकी अच्छी पैठ है। अभी देखने पर स्पष्ट मालूम होता है कि समय पर वह सुप्रसिद्ध विद्वान होगा। कहावत भी है, ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’।

हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और= (कहना कुछ और करना कुछ और)

प्रयोग- आजकल के नेताओं का विश्वास नहीं। इनके दाँत तो दिखाने के और होते हैं और खाने के और होते हैं।

हाथ कंगन को आरसी क्या= (प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या)

हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार= (उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए)

हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और= (बोलना कुछ, करना कुछ और)

हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत= (बेमौका)

हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान= (नीच का सम्मान)

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